आहट-१०
9 पटाक्षेप आज सुबह से ही घर में हलचल बढ़ गई। अनिल परिवार सहित लौट रहा था। बच्चों ने अनुभूति से कहा था , उन्हें नहीं जाना है। पापा को कहिये न एक दो दिन और रुकेंगे। अजय ने अनिल से कहा भी कि बच्चों को छोड़ दो , वह साथ ले आएँगे, पर अनिल तैयार नही हुआ। सुबह से नाश्ते की तैयारी में लगी थी। घर में सभी उदास थे । यहाँ तक कि विशाखा और अनिल भी उदास थे। विशाखा तो ऐसे लग रही थी , मानो रो पड़ेगी। बच्चे खेलने में मगन थे। मगर माँ! वह आँगन में चुपचाप बैठी थी। अनिल और बच्चों के लौटने का दुःख सबसे ज़्यादा उन्हें ही था। और जाते समय विशाखा कितना फूट-फूट कर रोई। उसकी रोने की वजह से सबकी आँखे भर आई। इस दृश्य को देखकर कोई नहीं कहता कि यह वही विशाखा है जो बँटवारे के लिए आतुर है। बड़े भैया आँगन मे एक किनारे चुपचाप बैठे थे। कभी-कभी नज़रें घुमाकर सबकी तरफ़ देख लेते थे। सबका मन भारी हो गया था। अनिल ने जाते हुए अजय से कहा भुलना नहीं भैया! ज़रूर आना। उनके जाने के बाद घर मे सूनापन छा गया था। उसे विदा करने कितने देर बाद ही माहौल सामान्य हो पाया था। बच्चोतक के चेहरों पर उदासी देखी जा सकती थी। शाम...