आहट-6
स्वार्थ
खिड़कियों और रोशनदानो से रोशनी धीरे-धीरे कमरे में उतरने लगा था। कमरे का अँधेरा छँटने लगा था । अनुभूति ने आँख खोलते ही रोशनी देख बिस्तर पर उठ बैठी। मगर अजय अब भी सोया हुआ था। बिलकुल किसी बच्चे की तरह । चेहरे पर कोई तनाव नहीं था। होंठो पर हल्की सी मुस्कान । एक बार अनुभूति का मन हुआ कि वह सोते हुए अजय के माथे पर चुम्बन ले लें।
वह वापस पुनः लेट गई । पिछली रात की एक-एक बात उसे याद आने लगी। उसके किचन का काम निपटाकर आने पर अजय ने कमरे की लाईट बंद करने कहा और जब वह लाईट बंद कर बिस्तर पर आते हुए पूछा था , क्यों नींद आ रही है?
तब अजय ने उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए बग़ैर किसी भूमिका के गाँव में अनिल के रवैये की पूरी कहानी सुना दी थी। अजय ने कुछ नहीं छुपाया था। लोकेश के ई-मेल से लेकर सब कुछ बता दिया था। बँटवारे की वजह से परिवार टूटने का डर भी उसने ज़ाहिर किया था । अनुभूति ने जब भाइयों के बीच नहीं पड़ने का अपना निर्णय सुनाया तो अजय नाराज़ भी हुआ लेकिन अनुभूति ने बड़ी चतुराई से बात संभालते हुए कह दिया कि गाँव जाने के बाद ही परिस्थिति देखकर ही निर्णय लेना उचित होगा , किसी भी निर्णय पर अभी पहुँचना जल्दबाज़ी होगी ।
अनुभूति ने यह कह तो दिया था लेकिन वह जानती थी कि परंपरा और संस्कार को जीने वाले इस परिवार के लिए किसी भी नतीजे पर पहुँचना आसान नहीं होगा। फिर वह अपनी देवरानी विशाखा के स्वभाव से भी परिचित थी , वह मान गई तो ठीक नहीं तो अपनी बात मनवाने वह किसी भी हद तक जा सकती है ।मन का बोझ उतर चुका था , और उसकी निश्चिन्तता अजय के चेहरे पर साफ़ पढ़ा जा सकता था।
अचानक कॉलबेल की आवाज़ से अनुभूति चौंक उठी। इतनी सुबह कौन होगा वह सोच ही रही थी कि अजय ने उठते हुए कहा मैं देखता हूँ।
दरवाज़ा खोलने पर इतनी सुबह मिसेस शर्मा और उसके पति को देख हैरान रह गया। औपचारिक अभिवादन के बाद अजय ने अनुभूति को आवाज़ देते हुए मिस्टर एंड मिसेस शर्मा के आने की सूचना दे दी । थोड़ी देर में अनुभूति चाय लेकर आ गई।
मिसेस शर्मा ने घर आने की वजह बताते हुए कहा कि कैसे उसके ननद ने मकान बेचने पर आपत्ति लगा दी है । दरअसल मिसेस शर्मा यह सोचकर आई थी कि अजय की पहुँच होगी और ननद की आपत्ति को नज़रअन्दाज़ कर मकान की रजिस्ट्री हो जाए। जबकि उसके ननद ने साफ़ कह दिया था कि यह बाबू और अम्माँ की निशानी है । इसे नहीं बेचा जाय।
अजय ने साफ़ मना कर दिया कि उसका रजिस्ट्री दफ़्तर में कोई पहचान नहीं है । बेहतर हो वे मिल बैठ कर मामला सुलझा लें। क्योंकि यदि उसकी अनुमति के बग़ैर बेच भी दोगे तो बाद में बड़ी दिक़्क़त खड़ी हो जाएगी।
मिसेस शर्मा ने यह कहकर उठ गई कि देखते हैं कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही पड़ेगा।
दोनो चले गए तो यहाँ एक नया सवाल खड़ा हो गया। अभी अजय कुछ पुछना ही चाह रहा था कि अनुभूति ने मिसेस शर्मा पर सवाल खड़ा करते हुए कह दिया कि आपने देखा मिसेस शर्मा पूरी सम्पत्ति हड़पने किस तरह लालायित है, और शर्मा जी तो कुछ बोल ही नहीं रहे हैं। जबकि भाई बहन के मामले में मिसेस शर्मा न बोले तो मामला सुलझ सकता है। आख़िर घर का इतने दिनो से उपयोग तो यही लोग कर रहे हैं।
अजय ने मिसेस शर्मा का पक्ष लेते हुए कहा पुराने ज़माने का मकान है, और फिर वे कुछ नया करने पुरानी सम्पत्ति को बेचना चाह रहे है तो माँ की निशानी का अड़गाबाज़ी क्यों? सीधे कह दे बँटवारा चाहिए।
अनुभूति ने यह कहते हुए चर्चा पर विराम लगा दिया कि हमें क्या करना है, उनका मामला है , वे जाने। पर बेहतर है घर का हिस्सा कर ले और अपना हिस्सा बेच लें।
अजय की इच्छा हो रही थी कि वह अनुभूति के इस बात का जवाब दे लेकिन उसके जवाब के लिए वह रुकी नहीं किचन में चली गई , और अजय सोच रहा था , ग़लत कौन? क्या बँटवारा ही अंतिम उपाय है।
अजय समझ रहा था कि समय के साथ सब कुछ बदल रहा है, और परिवार को बाँधने संस्कार और सामाजिक नियम किस तरह से टूट रहे हैं। वह सोच रहा था कि यदि अनिल भी बँटवारे के लिए अड़ गया, तब क्या होगा ? क्या सिर्फ़ बँटवारे से प्रेम सम्बंध समाप्त हो जाएँगे। क्या कोई और उपाय नहीं हो सकता ।
परंपरा और क़ानून में क्या सही है , कहना कठिन है। क़ानून यदि देश हित में है तो क्या परंपरा समाज हित में नहीं है ?
शाहबानो से लेकर शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर उत्पन्न विवाद उसके सामने था, लेकिन वह अब भी तय नहीं कर पा रहा था कि सही क्या है?
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