आहट-5
अंतर्द्वंद
अनुभूति की उलझने बढ़ते ही जा रही थी, उसके मन में अजय की परेशानी जानने की इच्छा तीव्र होने लगी, पर वह जानती थी कि तीनो भाई ही उन्हें कुछ नहीं बताएँगे । और वह इतना भी समझ चुकी थी कि अजय की परेशानी का संबंध गाँव से ही है।
बहुत विचार करने के बाद उसने अपनी बड़ी ननद सरिता को फ़ोन कर जानकारी लेने का निर्णय लिया । सरिता महासमुंद में ब्याही थी, और वह थोड़ा रिज़र्व नेचर की भी थी। ऐसे में अनुभूति की पूछताछ छुपी रह सकती थी , परंतु जिस तरह से सरिता ने अनभिज्ञता ज़ाहिर की अनुभूति और बेचैन हो गई। फिर उसने रायपुर में रहने वाली छोटी ननद सुनीता को फ़ोन लगाया, सुनीता अपनी बड़ी बहन के ठीक विपरीत बातूनी थी। अनुभूति ने जैसे ही गाँव का हाल चाल पूछा सुनीता ने पूरी कहानी सुना दी । और साथ ही यह वाक्य भी जोड़ दिया कि यह बात वह किसी से नहीं कहेंगी कि ये सब मैंने बताया है।
अजय की परेशानी का कारण सामने था। परंतु वह अब भी मानने को तैयार नहीं थी कि अनिल या छोटी बहु बँटवारा माँग रहे हैं । बड़े भैया ने कितना कुछ नहीं किया है अनिल के लिए। पढ़ाई में लगने वाले पैसों के लिए कैसे कैसे कष्ट नहीं उठाए , सोना तक बेचना पड़ा था। परंतु उनके माथे पर सिकन नहीं आई और आज ये हो रहा है। उसने मन ही मन कितनी बार सोचा कि यह सब बात झूठ निकले, सुनीता की कही बात ग़लत हो, यही सोचते-सोचते कब आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला। बाहर दरवाज़े की घंटी की आवाज़ से वह चौंक कर उठी। दर्द से सिर फट रहा था । किसी तरह दरवाज़े तक पहुँचकर उसने दरवाज़ा खोला और अजय को सामने देखकर एक किनारे होकर रास्ता छोड़ दी, अजय अभी सोफ़े पर बैठ भी नहीं पाया था कि अनुभूति ने पूछ लिया , क्या हुआ? गाँव में सब ठीक तो है ?
चौकने की बारी अजय की थी। अजय ने प्रश्न भरी निगाह अनुभूति पर डाली तो उसकी नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं हुई । उसने मुँह फेरते हुए बात बदलने की कोशिश करते हुए जल्दी से हाथ मुँह धो लीजिए , चाय बना देती हूँ कहकर किचन में चली गई ।
मगर अजय को अनुभूति का सवाल चुभ गया था । उसने कहा तुम क्या पूछ रही थी।
अनुभूति ने बात बदलते हुए कहा कि पिछले कुछ दिनो से आपको परेशान देखा तो मुझे लगा गाँव में कोई दिक़्क़त है , किसी की तबियत वग़ैरह ख़राब तो नहीं है।
अनुभूति के जवाब से अजय संतुष्ट नहीं था , फिर भी उसने कुछ नहीं कहा।
अजय चाय की चुस्कियाँ लेते सोच रहा था कि वह इस बात का ज़िक्र करे या न करे। अजय के लिए दुविधा कई तरह की थी । वह समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर इस समस्या का निदान कैसे किया जाय।
और इधर अनुभूति भी कम परेशान नहीं थी , उसने हिम्मत करके गाँव का हालचाल पूछ तो लिया था , फिर अजय के प्रतिप्रश्न ने उसकी हिम्मत तोड़ दी थी और वह भी इसी अंतर्द्वंद में थी कि बात कहाँ से शुरू करें ताकि इस समस्या का समाधान निकाला जा सके।
बहुत कम अवसर आया होगा जब दोनो ने एक दूसरे से बात-चीत किए चाय पी हो, दोनो अंतर्द्वंद में थे और दोनो ही नहीं समझ पा रहे थे कि बात कहाँ से शुरू की जाय।
अंत में अनुभूति कप उठाकर किचन में चली गई तो अजय ने एक गहरी साँस ली । अजय ने मन ही मन यह तय कर लिया कि वह अनुभूति से चर्चा अवश्य करेगा ताकि कुछ तो रास्ता निकले , लेकिन अनुभूति के अचानक गाँव के बारे में पूछना उसे अब भी साल रहा था, क्या उसे बँटवारे की बात का पता चल गया है ? नहीं... नहीं...! उसे कैसे पता चलेगा ? कहीं अनुभूति ने उसका मेल खोलकर पढ़ तो नहीं लिया , मगर मेल का पासवर्ड वह कैसे जान सकती है ? कहीं उसने ही तो लागआउट करना तो नहीं भूल गया । अपनी तसल्ली के लिए कम्प्यूटर तक आन करके देख लिया , फिर स्वयं को दिलासा देते हुए कहा हो सकता है वह ऐसे ही पूछ ली हो । लेकिन अजय यह भी तो जानता था कि अनुभूति बेकार का सवाल कभी नहीं करती , फिर क्या वजह होगी?
वह जितना सोचता उतना ही उलझता जा रहा था , फिर उसने टीवी चालू कर न्यूज़ देखने लगा, मगर उसका मन न्यूज़ में भी नहीं लगा , वह लगातार चैनल बदल रहा था। और फिर थककर टीवी बंद किया और कमरे में आ गया ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें