आहट-4
अंतर
अजय ने आमने-सामने होकर अनिल से बात करना तय कर लिया था परंतु उसकी उलझन कम नहीं हुई थी। वह अनुभूति से भी बात करना चाहता था पर इसका कोई मतलब नहीं था। अनुभूति साफ़ कह देती , आप भाइयों के मामले में मैं क्या कहूँ, या हो सकता है वह भी परंपरा को वर्तमान चलन के तर्क पर कसने की कोशिश करती। आफिस में लंच हो चुका था, अजय अभी भी उस उलझन को सुलझाने की कोशिश में लगा था , तभी मिसेस शर्मा सीधे दरवाज़ा खोलकर अजय के टेबल के सामने की कुर्सी पर बैठते हुए कहा- कहाँ खो गए हो सर, सब ठीक तो है!
मिसेस शर्मा के इस तरह के सवाल से अजय हड़बड़ा तो गया परंतु स्वयं को सहज दिखाते हुए कहा- कहीं नहीं, बस यूँ ही गाँव की याद आ गई थी। मिसेस शर्मा और मिलिंद ऐसे थे जो सीधे चेंबर में आ जाते थे । अजय ने इसका कभी बुरा भी नहीं माना था। मिसेस शर्मा काफ़ी बुद्धिमान और मेहनती थी। वह बात भी ख़ूब करती थी। धार्मिक प्रवृति की मिसेस शर्मा का धर्म को लेकर अक्सर मिलिंद से बहस हो जाया करती थी। तब कई बार अजय को बीच-बचाव करना पड़ता था। मिलिंद इसके उलट सर्व धर्म समभाव की बात करता था। धार्मिक कट्टरता को लेकर मिलिंद अक्सर मिसेस शर्मा पर चुटकी लेता और इसके बाद मिसेस शर्मा रुकने का नाम नहीं लेती थी ।
मिलिंद के लिए धर्म निहायत ही निजी मामला था परंतु मिसेस शर्मा इसके उलट थी। इन दोनो के बीच कई बार अजय स्वयं को फँसा हुआ महसूस करता था , और बात को बढ़ता देख वह किसी न किसी बहाने मामले को शांत करता था ।
अजय सोच ही रहा था कि मिलिंद अब तक कैसे नहीं आया तभी दरवाज़ा खुला और वह भी आ गया। अभिवादन की औपचारिकता के बाद मिलिंद ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा कि अगले हफ़्ते वह छुट्टी लेकर गाँव जा रहा है।
अजय ने बड़े ही शांत शब्दों में कहा- मिलिंद तुम तो जानते हो इस समय काम की अधिकता होती है। छुट्टी संभव नहीं हो पाएगा, फिर तुम पिछले हफ़्ते ही तो छुट्टी लेकर गाँव गए थे। क्या हुआ। क्या परेशानी है?
मिलिंद एक ही साँस में कहता चला गया कि किस तरह उनकी दोनो बहनो ने पैतृक सम्पत्ति पर हक़ जताना शुरू कर दिया है। वह तो उन्हें सम्पत्ति में से हिस्सा देने तैयार है , पर अन्य तीनो भाई इसके लिए तैयार नहीं हैं। अब मैं क्या करूँ , समझ में नहीं आ रहा है। घर का बड़ा होना भी मुसीबत है । भाइयों को समझा रहा हूँ कि सम्पत्ति में क़ानूनन लड़कियों का भी हक़ है , परंतु कोई सुनने को तैयार ही नहीं है।
अजय के ज़ेहन में लोकेश का ई-मेल पुनः घूमने लगा। तभी मिसेस शर्मा ने कहा कि बहने चाहती हैं तो हिस्सा देना ही पड़ेगा। वे अदालत से अपना हिस्सा ले लेंगी । इसलिए हँसी-ख़ुशी मामले को सुलझा लेना चाहिए।
वही तो मैं अपने भाइयों को समझा रहा हूँ। सबको धर्म कर्म और परंपरा की पड़ी है। सभी अपनी सुविधानुसार परिभाषाएँ गढ़ लेते हैं । तात्कालिक लाभ और निजी स्वार्थ हावी होता जा रहा है। आख़िर वे हमारी बहने हैं , उन्ही पिता की संतान हैं फिर उनका हक़ क्यों नहीं है। भुनभुनाते हुए मिलिंद बाहर चला गया।
अजय को पहली बार लगा कि परंपरा और मान्यता की दुहाई देने वाली मिसेस शर्मा आज अचानक क़ानून की चिंता क्यों करने लगी । परंपरा और मान्यता क्या समय के साथ बदलना चाहिए? उसने मिसेस शर्मा से पूछा कि आख़िर वह बहनो को पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा देने की पक्षधर कैसे हो गई। जबकि वह हिंदू धर्म और भारतीय परंपरा की दुहाई देते नहीं थकती । मिसेस शर्मा ने अजय को घूरते हुए कहा कि आख़िर महिलाओं पर ही अत्याचार क्यों ? पुरुष मानसिकता की वजह से ही महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित किया जाता रहा है। अब तो क़ानून ने भी अधिकार दे दिया है तब भी मिलिंद के भाइयों जैसे लोग है जो पुरुष प्रधान मानसिकता से उबर नहीं पाए हैं। और ऐसे लोग अपनी बहनो तक को अधिकार नहीं देना चाहते।
अजय ने कहा फिर तुम्हारी भारतीय परंपरा का क्या होगा?
मिसेस शर्मा को यह सवाल अच्छा नहीं लगा इसलिए उसने कहा- समय बदल चुका है सर! अब महिलाओं को परंपरा के नाम पर वंचित करना ठीक नहीं है । जिस परंपरा से किसी को तकलीफ़ हो वह टूट जाना चाहिए।
फिर क्या तुमने अपने ननद को हिस्सा दे दिया है , सुना है वे लोग बेहद ग़रीब हैं। यह कहते हुए अजय ने मिसेस शर्मा को अनजाने में भड़का दिया।
मिसेस शर्मा ने कहा कि वे और उनके पति तो तो कब से उनका अधिकार देने को तैयार हैं परंतु हर बार वही मना कर देती है , फिर पैतृक सम्पत्ति के नाम पर दिल्ली का एक मकान ही तो है.। वे जब चाहे अपना हिस्सा ले सकते हैं।
अजय ने मुस्कुराते हुए कहा -उसे तो बेच रहे हो । क्या आधी राशि उसे दोगे? क्या बेचने से पहले उसे बताया गया। मिसेस शर्मा के पास इसका कोई जवाब नहीं था। वह काम का बहाना कर वहाँ से जाने के लिए कुर्सी छोड़ चुकी थी। अजय देख रहा था वह कितनी तेज़ी से कमरे से बाहर निकल चुकी थी। दरवाज़ा धीरे-धीरे बंद हो रहा था। उसने मोबाईल उठाकर अनिल का नम्बर डायल किया।
दूसरी तरफ़ से अनिल का स्वर सुनाई दिया, प्रणाम भैया!
अजय ने आशीर्वाद देते हुए पूछा कैसे हो । इसके जवाब में जो शब्द ठीक हूँ अजय के कान में टकराए वह समझने के लिए काफ़ी था कि कुछ भी ठीक नहीं है। अजय में सिर्फ़ इतना कहा दीपावली की छुट्टी में गाँव आएँगे तो बैठकर बात करेंगे। तुम फ़िक्र मत करना । सब अच्छा हो जाएगा। यह कहकर अजय ने फ़ोन तो काट दिया लेकिन वह जनता था यह सब इतना आसान नहीं है । बड़े भैया मान भी जाएँगे तो माँ नहीं मानने वाली है। वह परंपरा की न झुकने वाली मज़बूत दीवार है , जो किसी भी हाल में बँटवारा स्वीकार नहीं करेगी।
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